ज्यांकी गारा की देही की तकदीर

कुम्हार का घर्ण्ण घट्ट फिरता चाक पै मंडै

सुखाती बेरां

कोई डील भैं ज्या तो भैं ज्या

सूख्यां बार पाछै

भ्यां डीलड़ां पैई चितराम रंगै

जाणां छां... हाल आवां की आग बाकी छै

पण आवां मं जमाबा सूं पहली

अतनी-सी'क अरज छै

कंवळ्या हाथां की कोराणी!

थोड़ी अधर धर-थोड़ी धीरां म्हल,

बात की बात मं, जरा-सी बात मं

टूट जांवांगां कै तरड़ जावांगा

काचा गार का कळस्या छां तो भी कांई होयो

जिन्दगानी तो सबनै प्यारी लागै छै।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : अम्बिका दत्त ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम