पाणी री छोळ
अेक तट सूं बीजै तट तांई
पूगती-पूगती अदीठ हुय जावै
पण,
सत्ता री कूंत नीं है सो'री!
जळ री लै'रां
लेवै जद करवट
तूट जावै तट-बंध
बिधूंस रै डर सूं
कांप जावै-पासाण हिड़दा!
पण, फिड़का बाज
छोळां रै हबोळां मांय
अस्तित्व सारू करै खेचळ...
जळ-मंथण
समेट लेवै भंवर बण’र
अलेखूं आसियाणा उजाड़ण पछै
जड़ता नै
फेरूं ई खुसामदी
घायल हिड़दां माथै
मिठबोलै मिजाज सूं
जळ-भंवर मांय बिछाय नै जाळ
ढूंढतो रैवै आपरो अस्तित्व!
जळधारावां
आपरै सैंस फणां साथै
बिकराळ बणनै फैल जावै-
जकड़ लेवै उणनै
डूब जावै इण भांत
फिड़काबाज नाव डुबोयां पछै
आपोआप! जुलमी जळ मांय!