सतूड़ी रो बींद

निसरमो बण्यो

दारू रै ठेकै री

फेरी काटतो

दारू पी

कादै मांय

कोजोड़ी नाळी मांय

पड्यो सड़ै।

बेसरमी रो

परदरसन करतो

सुवारथ में डूब’र

गमग्यो अंधारै री

लड़ाई लड़णै वास्तै

अर बा

घूंघट हटा दीन्यो

मैनत कर टाबरां रो

भरण पोसण करण लागी।

मैनत करतां-करतां

हाथां-पगां उपरां उभरगी नसां

हाथ थाकग्या

गोडा टूटग्या

आंख्यां उंडी बैठगी

पण

भूख री पीड़ सूं

अल्डांवता टाबरां नैं जोयनै

सतूड़ी रो काळजो

धुकै लाग्यो।

पेट-पीठ सूं चिपक्योड़ी

फेरूंई

दूध-रोटी री

जुगाड़ करणै

मजूरां री टोळी सागै

भागी जावै।

सुवारथ री

दुनियां मांय

सुणसाण जीवण में

बींद सूं

अळगी रैवै-सतूड़ी

बीरै माथै सोवै

सुहाग री बिंदी

मांग में भर् यो सिंदूर

अंधारै में चिलकै

सतूड़ी रो अस्तित्व।

जुझारपणै नैं देख’र

लुगायां गुमान करै

पण

सुवारथी आदमी

निजू मामलो जाण’र

अदीठ करै।

सतूड़ी रा

थाक्योड़ा हाड

सवाल करै-

कठै गई आत्मा

आदमी री?

स्रोत
  • पोथी : जोत अर उजास ,
  • सिरजक : रतन ‘राहगीर’ ,
  • प्रकाशक : युवा सिंधी विकास समिति
जुड़्योड़ा विसै