म्हारो मन करै

नाता-रिस्ता

रेललाइन हो जावै

सगळा रिस्तेदार होवै

उण माथै चालण आळी

रेल रा डब्बा।

पछै सगळै टेसणां माथै

थमै बा रेल

उतरै-चढ़े-भंवै

गळै मिलै

अर चाल पड़ै साथै

ईंया चलै बा रेल

सगळा ठाठ सूं खेलै

जूण रा खेल

पण उण रेल में

किणी लाटसाब सारू

आरक्षित नीं होवै

एक भी डब्बो।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : नरेश मोहन ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै