तू याद कर

थारी भैंस्या जद

जोहड़ै सूं निकळ’र

नाळी आळै दरडां कानी भाजगी

मैं थारली लाठी लेय’र

भैंस्यां नै पाछी टोर'र ल्यायो

लड़ाई रै काम आंवती लाठी

आपां दोनां नै प्रेम में

पतो नहीं किंकर जोड़ दिया

आज भी

मैं जद कोई लाठी पकडूं

लाठी रै दूजै सिरै

थारो हाथ देखूं

एक सैंधी सी बोली

म्हारै कानां में गूंजै

म्हनै दिखै

भाजती भैंस्या,

हेला मारती तू

का पछै गाम रो जोहड़ो!

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हरीश हैरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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