अणबसी होयगी भाई जी!

घर छोड के कुण राजी है

पर आथण भूख लागै है-

टाबर नै रोटी ना मिलै

तो भीतर बाकी कोनी रैवै

बस पेट खातर आयग्या अठै

अठै तो आंतां आंधासीसी होयगी

भोत ऊंचा-ऊंचा मकान है अठै

मैं तो मंजल गिणतो-गिणतो चूंधग्यो

छोटै थकां टेलीविजन में देख्या इस्या

अब आवां नीं अर पड़तख देखां नीं

पण भाईजी, अठै आदमी कोनी रैया

सारां रो भीतरलो मरग्यो

कोई फरक नीं पड़ै

कोई जियो चाहे मरो

कई बारी इयां लागै

जाणै आं मकानां में

ईंट-भाटो कोनी लागेड़ो

खुद आदमी लागेड़ो है

जको आज री दौड़ में

आपरो अंतस मार

भाटो होयग्यो।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : सुनील कुमार
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