थारी म्हाणी वात जिंदगी

आती जाती सांस जिंदगी

घूंट जैर रौ घुटती सांसां

और झूंठो वैवार जिंदगी।

अठा वठा री इण री उण री वातां रो झंझाळ जिंदगी,

रिश्ता री बहती नदिया में बिन पैंदा री नाव जिंदगी।

घड़ी बादल नै ताकै

राखै गहरी आस जिन्दगी,

बरसां सूं तपता मरूथल में

ज्यूं हिरण्या री प्यास जिंदगी।

कुंठित मन री कुंठावां रा, मन पै जबरा वार जिंदगी,

हळकी पण री इण दुनियां में, लागै है अब भार जिंदगी।

रावण कुंभकरण जिस्या नै

रामायण रौ पाठ जिंदगी,

अेक ही छत रै नीचै लोग

चीन री ज्यूं दीवार जिंदगी।

मन री पीड़ समझै कोई, आंसूड़ां री धार जिंदगी,

हंसता रमता बाळपणा में, ज्यूं घोड़ा पै घाव जिंदगी।

किण बिध गाऊं कीन्है सुनाऊं

वटल्या सुर अन ताल जिंदगी,

माय बाप रै व्हेतां थकां भी

लागे जाणे बेताळ जिंदगी।

कठै गई वा मीठी वाणी, कठै गई वा प्रीत पुराणी,

अब तो हिवड़ै री राणी, लागै जिन्दा लाश जिंदगी।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : करुणा दसोरा ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : 2011
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