जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है
वं हाथां ई
म्हारै अैड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तौ बीज देंवती।
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती उगटावै
नुंवा अबोट,
कद सूं म्हारौ
साव उघाड़ौ औ तन
इण माथै थूं
अ आ ई तौ रेख देवती।
सांभ्या इतरा साज
बिना साजिंदां
रागोळयां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तौ/एक सुरौ
इकतारौ ई थमा देवती।
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तौ फेर देंवती।