आंगण में लागै बा तुलसी री क्यारी सी।

मोतीड़ा बरसावै बा समदर री झारी सी॥

भोर रौ सुपणो, सुपणां रौ सुरग,

सुरग री आभा।

खुद पैरे बौदा,

टाबरां नै नुवां ओढ़ावै है गाभा॥

हिवड़े रौ जास, अंतस री आस,

मुळकतां होठां पर मीठी सी बात।

ममता रै सागर मांय गौता लगांवती,

आभै सौ विस्तार बा लाड में रळांवती॥

हर पीड़ हर दरद री दवाई,

लाड री थाप उण री बण जावै है।

चिंता म्हनै हुवै अर माथै पर

सळ बा लावै है॥

दुनिया म्हारी चीख सुणण नै

त्यार बैठी पण म्हारी आंख्या में

अेक आंसूड़ौ भी उण नैं नीं सुहावै है।

दुखड़ां में बिलखते जील माथै

ममता रौ लेप लगावै।

टाबर रै नान्है से घाव माथै

हजारूं मोती बैवावै॥

डूबती नावड़ी रौ केवट बण जावै।

भूले भटकै नै जामवंत ज्यूं मारग

दरसावै॥

जीवण जुद्ध रै रथ री बा है सारथी।

इण सूं लूंठौ जग में और कुण है

महारथी॥

उण मांही हेत री मनवार,

ताकत उण में तलवार जिसी।

उण में पाजैब री झणकारां,

देवां रा दरसन इण मांही॥

जे अेक नान्हौ सौ पोखर हूँ म्है,

तो उण सुधा रौ अथाह सागर है बा

बा...बा...कुण? आपणी मां

स्रोत
  • पोथी : साहित्य बीकानेर ,
  • सिरजक : सुधा सारस्वत ,
  • संपादक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : महाप्राण प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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