रुत रुलावे रात कदी

अर् कदै हंसावै

प्रेम झरे हैं आंख्या सूं

अर् कदै हंसावै

मेह जम्यौड़ा खितीज ऊपरे

आंख्या नित झकोरा खावै

सबद फूटे नी होटां सूं

पगल्यां ठाम जम जावै

इण जीवण री विरक्ति माथे

आसक्ति कैंया रोब जमावै

हमझो थें तो म्हने वतावौ

जीवण कैंया हिचकोला खावै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : किरण बाला 'किरन' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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