जय गण तंत्तर

जय जन तंत्तर

हरियळ चूनर

ओढ्योड़ी तन

मुळक रैयो है

माटी रौ मन॥

फेरे जादू मंत्तर।

बळिदानां रा बीज

बोयोड़ा खेत में।

आजादी री पौध

फळै है रेत में।

लेवै सांस सुतंत्तर॥

फूलां री सौरम

मैके है बाग में।

सूरज-चांद उजासै

तन अनुराग में।

दूर हट्यो परतंत्तर।

भद भाव रौ भरम

मिटै है हेत में।

त्याग-तपस्या फळै

करम रै खेत में॥

देवे जीवण मंत्तर

जय गण तंत्तर

जय जन तंत्तर

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : शिवराज छंगाणी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण