करबो करो ऊंट अरङाटा, चाकी चाल करै घर्राटा
अेक बोल भी नहीं सुणां, म्है होग्या बिल्कुल भैरा-भाटा॥
बूझै घरवाळी – कोङै छै ऊपरला ताळा की ताळी,
होठां की हरकत सैं समझ्या – बूझै छै क्यूं थाळी-वाळी,
वा बोलै थां सैं लङबा नैं, मैं कांईं बैठी ठाली,
म्है समझ्या कै आबाळी छै, अठै आपणी जेठी साळी।
करां कान में खूब कुचरणी, पण ज्यूं आडा लाग्या डाटा,
अेक बोल भी नहीं सुणां, म्है होग्या बिल्कुल भैरा-भाटा॥
घर में म्हां छोरा-छोरी आपसरी में जद बतळावै,
म्है समझां छां ये नालायक, मिलकर म्हां की हंसी उडावै
धमकायां मुळकै सै सगळा, कोई भी नहीं सांच बतावै,
वां की चुप्पी अर हांसी पर झाळ-झूंझाळा म्हानै आवै।
मन में आवै चाल कनैं सी, धरां गाल पर च्यार चपाटा,
अेक बोल भी नहीं सुणां, म्है होग्या बिल्कुल भैरा-भाटा॥
कोई बोलै आ’र कनै सी, कानां मांय भींभरी बाजै,
कङकै बिजळी बङकै बादळ, नेङै जाय समंदर गाजै।
चोर भलाईं खुङका करता, सारो माल मतो ले भाजै,
नहीं सुणा तो मरां झेंपता, दुखङौ कहतां मनङो लाजै।
निसंक लुगाई कनै पोढै, नहीं सुणा बीं रा खर्राटा,
अेक बोल भी नहीं सुणां, म्है होग्या बिल्कुल भैरा-भाटा॥
कंवळा भावां की मारी, वां कानां मूंडो घालै,
म्है कैवां – थांरी फुसफुसाट सैं, खुजली अर गळगळी चालै।
बुरो मानती मूंडो फेरै, लाख हलावां पण नीं हालै,
दोस करमङां नैं द्यां छां, हिवङा मांय कटारी सालै।
कई दिनां रैवै अणबोलो, दोन्या का मन खाटा-खाटा,
अेक बोल भी नहीं सुणां, म्है होग्या बिल्कुल भैरा-भाटा॥
बीं की नई नकोर भायली, हुंसी-हुंसी घरां पधारी,
मीठी बातां कर चुटक्यां ली, मिरगानैंणी कामणगारी।
पङी कान में अेक न पल्लै, अळी गई सारी की सारी,
पिछतावै यो ‘भैरो जीजो’ करमहीण लाचार 'बिहारी'।
पाछी फेरूं कदै न आई, जाती-जाती करगी टा-टा,
कई भांत सैं दंड पाय छै, जिका अभागा भैरा-भाटा॥