आंगण री लीक

दिखापै री रीत!

बातां रा मांडणा

साथै खावणा...

टाबरां रै खातर

संबंधा नै ढोवणा !

इण तरै रेवणो

थारो-म्हारो

म्हारो-थारो

जरूरी है कांई?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विप्लव व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
जुड़्योड़ा विसै