माथै कफण, गळ किरपांण,
वा डांडी पूगै सगसांण,
उण मारग जावण वाळा व्है,
अणजाण्या के आगीवांण।
जका नींव रा भाटा बणसी,
वां भाटा पर मिन्दर चुणसी।
जुग जुग वां रा गीत सुणासी,
लोक-लुगायां कथा-पुराण।
काळस खील, दीवड़ां वालै,
आप बळै पण लोक रुखालै,
नूवी पीढियां पंथ बतावण,
बाकी रैह जावै सैनांण।
परकारज घर बार उझाड़
जुग पलटै वांरै, पसवाड़ै,
वां मिनखां सूं मोटौ कोनी,
जे साचांणी व्है भगवान।
जन री पीड़ परख लै पल में,
वे नर जुग री खातर जल में,
जुग री ओखद वांरी बाणी,
पीढ्यां पूजै व्हांरा ठांण।
आगीवांण बणै खुद आपै,
जुग सूं दो पग हालै, आगै,
लोक बणावै चुरग नै नायक,
जुग रा नैण परखलै पांण।
जकी समाधी लागै मेळा,
वो इण संचै ढलियो पैला,
मरै काळ सूं कद नर केहर,
जीत्योड़ा जीवण घमसांण।
जन मुगती रा मारग रूध्या,
जग सूं आगीवांण अदीठ्या,
भटको खावै भावी पीढ्यां,
जीव अमूज्यां सुसग्या प्राण।