थोड़ा दिनां तांई
औरूं जुझण री सौगन खाई है
तू सागै चाल सकै तो।
तावड़ौ घणौ तीखौ, उमर आधी
अर खांधां माळै बोझ
इण टैंम में अेकलौ हूं
फगत अेकलौ
जीव करै है कै
सगळा अंधारा नैं छोड़’र
समदर में डूब जाऊं
टैम थोड़ौ है, फासलो ज्यादा
अर फेरुं गेलै में कांच रा टुकड़ा
बिखर्यौड़ा है
बगतावरी ज्यादा है सभावना
अर यो जमाना रो जहर पी’र
म्हारा पग लड़खड़ावै है
जे तू नीं दे सक्यौ सहारौ।