म्हारी

बुद्धि रा मेंढ़का

क्यूं फूलै?

पराई पोथ्यां स्यूं परबारोंइ

पकड़योड़ो

थारो ग्यान

भूंविज्योड़ो भतूलियो है-जिको

मिनख’री जूण नै

अमळ ज्यूं घोळ नाखै।

दूजां री झोळी रा

उड़ा देवै पानड़ा

रोही स्यूं निसरै जद

सूणीजै

आप आपरै इन्दाज स्यूं

बोलता गादड़ा

आंरी

हु s s का s s हु s s s s

हड़क्योड़ी गंडकी रा।

हाडका है

जकां कानी कोई जोवै कोनी

तू बेगाना छान मैं

कद तक सोवेळा

जागती जोत

तनै'इ जौवै है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : ब्रज नारायण कौशिक ,
  • संपादक : गोविन्दशंकर शर्मा
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