ज्ये रूंख मैं होवै दम,

तो बायरा की कांई मजाल

कै हलादै—

ऊंकी जड़ाँ नै।

बस वै धसी होवै ऊंडी

संस्कारा की गार मैं

मरजादा की लैर।

स्रोत
  • पोथी : धरती का दो पग ,
  • सिरजक : गोविन्द हाँकला ,
  • प्रकाशक : क्षितिज प्रकाशन (सरस्वती कॉलोनी, कोटी) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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