रोज आवती

गळी मांय

अेक मोटी झोळी

खांधै टांग्यां

हेलो पाड़ती,

बाई बाई

बीरा बीरा

कोई कचरो है तो ल्याओ

आखी गळी घालती बींरी

झोळी मांय

फूस-कचरो।

कई

आपरी कुदीठ

अर माड़ी नीत

नाखता

बींरी झोळी मांय।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर जनवरी-जून ,
  • सिरजक : संतोष चौधरी ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान ,
  • प्रकाशक : कथेसर प्रकाशन
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