बैली !

रोटी रै मिस

भाजता रैया आखी जूणभर

दिन देख्यो रात

आंधी देख्यो मैह

पाळो देख्यो ना देखी गरमी

पण कदै

भरपेट रोटी मिली

छिणभर इज सुस्ताव !

अर

रोजी रै रजवाड़े मांय बैरण

भूख भखगी

आंख्या रा सुपना।

स्रोत
  • सिरजक : पूनमचंद गोदारा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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