भूख...!

कित्ती निठुर है

इण मिनखादेही रै कंकाळ मांय

कठैई कठैई है...!

पण कठै...?

निजर आवै...?

पण हां,

है जरूर...

पकावट...

नींतर—

आदम रौ बेटौ

कूड़ बोलतो...?

चोरी करतौ...?

डाका डाळतौ...?

आपरा कायदा, मानतावां रै माथै

धार आळी कटारी फेरण सारू

ताकड़ौ बैवतो...?

भूख...!

याद आयौ—

आपां नै बांदरी बणाय

गळा में लोकण री सांकळ न्हांख

(लोकण री सांकळ...!)

बेसक...

नींतर कठैई बंदरिया

पेट भरियां पछै भागनीं जाय

क्यूं के

हाल तौ मदारी भूखौ है...

उणरा छोरा-छापरा भूखा है...!

मदारी सांकळ खींच’र कैवै—

“इण बाई रै पगै लाग

मां’जी रा पग दाब

बाबूजी नै सलांम कर

बा’ साब नै जैरामजी री...”

मदारी बांदरी नै पूछै—

“थूं सलांम क्यूं करै...?

बादरी जमीं ऊपर आडी पड़’र

खुदरौ पतळौ पेट बतावै—

“इण रै खातर…!

मदारी उणनै कैवै—

“तौ मांग बाई सा’ब कना सूं

दियौ अंदाता

भूखी बांदरी नै

लुक्कौ—सुक्कौ...”

बांदरी उणियारै माथै

गरीबी दरसाय हाथ पसारै

कोई दियालु...माई रौ लाल

दो-च्यार रोटी रा टुकड़ा

फेंक देवै

बांदरी वां टुकड़ां नै उठा’र

मूंडै रै मांय न्हांखै—

इण पापी पेट भरण सारूं

के इण सूं पैला ईं

मदारी बिजळी रै उनमांन

झपट’र खोस लेवै टुकड़ा

अर न्हांख देवै झोळी में

(कारण—हाल तौ मदारी भूखौ है

उणरा छोरा—छापरा भूखा है

पण बांदरी री भूख...?)

फेर पाछौ दूजौ घर...

“बाई सा’ब रै पगै लाग

सा’ब नै सलांम कर

बा’साब नै जैरामजौ री...”

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : मगर चन्द्र दवे ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै