लाखां तारां बिचाळै

प्रभातियौ तारौ

चमकै,

लड़ै-भिड़ै अंधारा रै खिलाफ

चुपचाप।

देवै बटाउवां नै

मारग रा अैनांण

बंधावै धीज

छोटा बुझ्योड़ा

अर निबळा तारां नै

पण

सूरज रौ उजास

अर तेज

मेट देवै उणरी

सगळी खेचळ

तौ डिगै नीं

अड़िया रैवै

आपरी जग्यां,

जाणै है कै

सूरज तौ डूब जावैला

पाछौ आवैला

अंधारौ तकैला

अर बुझता तारा

बटाऊ

उणरै कानी।

फेरूं उम्मीद सूं

बंधावैला वौ

सगळां नै धीज।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : वाजिद हसन काजी ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकासण
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