उजाळो फेल्यो, तारा छिपग्या
हुओ प्रभात, सूरजड़ो उग्यो
इण नूं ओड़ी प्रभात में, मानखो ढूंढ रह्यो हूं।
इण जेर भरियोड़ी दुनिया में, इमरत नै ढूंढ रह्यो हूं।
फूळड़ा महके, पंखिडा चहके
निराई भटके, घरां—घरां
इण राम-नाम री वेळां में, दाता नै ढूंढ रह्यो हूं।
इण जहर भरियोड़ी दुनिया में, किरतार नै ढूंढ रह्यो हूं।
म्हारी आगळ छोड़
अळगों बेग्यो, छेटे
टाबरियां सारू ठोड़-कुठोड़ सूकी रोटी नै तिरस रह्यो हूं।
इण जहर भरियोड़ी दुनिया में, इमरत नै तिरस रह्यो हूं।
पंखिड़ा उडग्या,
समदर पार, नदी कांठे
कंगूरो माथे, सूखे ठूंठ
बिच्यि चुगाण सारू, दाणां नै जोय रह्यो हूं
इण जहर भरियोड़ा, दुनिया में, सिद्धार्थ नै जोय रह्यो हूं।
बो देखों।
झपट्यो सिकरो
रूदन त्रास हा-हाकार मंडयो
नागा,भूखा तिसा बिलखता देख रह्यो हूं।
इण जहर भर्योड़ी दुनिया में, इमरत नै ढूंढ रह्यो हूं।
जब तांई अे सिकरा है
लूट-पाट करणियां
रिश्वतखोर, रूपगा ब्यौपारी
रोवता रैला, अे टाबरियां
दर-दर ठोकर खावणियां
आं सगळां भूखी आंख्यां में, इंसान नै ढू’ढ रह्यो हूं।
इण जहर भरीयोड़ी दुनिया में, इमरत नै ढूंढ रह्यो हूं।