अमावस री रात

फगत बिखारै निरासा।

अबखायां रै मारग

सागर लै'रां उळीचै आसा।

करमां री कळम टूट

मेहणत मोती मंगळ हुवै।

आखर—आखर प्रीत,

अणभव खेती सफल हुवै।

हूंस उंडी डूब

भावां सूं भरपूर है।

टूट्या पंख सागै

नदी बैवण, चूर है।

मन, बचन, कारज

मानखा री दौड़ है।

कीमत हिम्मत री

हूंस नै ठौड़ है।

स्रोत
  • पोथी : हूंस री डोर ,
  • सिरजक : हरीश सुवासिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
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