हिवड़ा रे!

समदर सो बणजै

समेटजै बिरखा नैं

आपरै आंचल मांय

पण फेरूं बादळी

बणबा री खातर।

हिवड़ा रे!

बादळी सो बणजै

बावड़जै पाछो

धरा री गोद नैं

भरबा री खातर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : आशा शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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