म्हैं थारा जस-गान

सुण’र ही आयो हो

इण सै’र में।

म्हैं नैड़ो होर’र

देख सक्यो हो

थारा मिंदरा में

सैंग देवां नैं

जातिगत कुंठा री

मैली चादर ओढ़’र।

अठै देवळियां में

झुंझार रण-बांकुरा

उच्चवर्णी शहीद

घोड़ां माथै

मध्यवर्णी शहीद

ऊंटां माथै

अर निम्नवर्णी शहीदां रो

कीं ठा नीं।

धत्।

थारै जस गान रा

सैंग जस गान रा

सैंग शहीद

हुयग्या बावना।

म्हैं और कांई देखतो

भाटा रा बुतां में।

रीस में

हूं छोड़ चल्यो हूं

थारो सै’र

पाछो मुड़तो

म्हैं देख्यो

थारै जस-गान री उर्वशी

मैलो ढो’री ही

समूचै सै’र रो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति)
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