सुण! हिवड़ै रा पट खोल,
कीं न कीं तो बोल!
सुण! इण अंधारै रो
ओ लांबो मून
इण नै अब तोड़
वै तूटोड़ा तांत जोड़।
हिवड़ै रै सागर में
कांकरी मार, लैरां उठा
कोई गैरो सबद सुणा!
वो सारथक सबद
जिण सूं
नवा गीत जाग जावै
अर जूण चाल पड़ै
हिवड़ो खिल जावै,
नैणां नवी चमक आवै।
इण मांझळ रात में
सुण! काळती कस्सारी री
अडोळ अतूट कूक,
हिवड़ै हबोळा खावती हूक।
दूजै पतंगां री बतळावण,
वै ई तो करै स्यात आ बात।
अंधारो छंटसी तो सरी
कति पण कठै है उजास?
पण कोई उपाव आपां जोवां
इण अंधारै सूं लड़ण सारूं
कोई चिणगारी उपजावां
सुण! कीं सोचां आपां
पण सोच.... सोच
अबोलो नीं व्है
उण नैं की सबद चाहीजै।