सुण दीवाली सुण दीवाली,

हिवड़ै री जोत जगाती जा—

जनता में सगती भरती जा॥

रोटी नै तरसे मिनख बापड़ो,

आबात सुणी ना जावेला।

भूखा तिरसां री हांय हांय,

‘इन्कलाब’ कदै ले आवेला॥

कै'तो रै'सी मैल मालिया,

कै झुंपों रा तिनका रैसी।

कै'तो रै'ला मैणत वाला,

कै धनिकांरा धंधा रैसी॥

जुलमां रा दीप बुझाती जा,

मैणत रा ढ़ोल बजाती जा॥

राम राज लावण सारूं

लिछमी ने भी मनणोपडसी।

सामता जूं सेठां रो भी,

साथ छोड़ हटणो पडसी॥

मैणत रा पुतला करसां ने,

हिवड़े मुलक लगाणो पड़सी।

जद उजालो होसी जग मां,

जोत जोत सैचण करसी॥

अणचेता आग लगाती जा।

मिनखां ने मिनख बणाती जा॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : जवानमल पुरोहित ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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