जद सांभू कागद कलम

लिखण री बंगत

मनड़ै रा सगळा तार

सागै ईज झणझणा उठै

मनड़ै रै आभै माथै

अणथाग चितराम

घेर-घुमेर आया

वौ हेत अर वौ खेत

खेत माथै ठूंडिया खोदतां

ईंट्यां रौ थपार

उण माथै सांचै पर थपकी,

मोढै पर कस्सी लियां सिंझ्या

आयठणां सूं करड़ा हाथ

वा पांच रुपिया री कोपी

वा मिसरी-सी बात

वै मुळकता होठ

वा धीरज री मूरत

संता री सूरत

म्हारी हिम्मत

म्हारी धीरज

म्हारी जमीं

म्हारौ आभौ

म्हारै जीवण री जड़

म्हारा सौ-कीं

कांई मांडूं, कांई छोडूं

हियौ भर आयौ

आंख्यां झरै

थे अजै नीं समझ्या

म्हैं म्हारै

बापूसा री बात करूं।

स्रोत
  • सिरजक : विवेकदीप बौद्ध
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