रूड़ी विस री रीत, पीतां ही पड़ जावणो
पण पापण मधु प्रीत, घुट-घुट मरणो मालती
नह गेला नह घाट, नह खाणा नह पीवणा
पसुआं सूं नपराट, मनख जमारो मालती
वन रा हाय विहंग, उड-उड भी घर बावड़ै
हूं नभ कटी पतंग, मग डूली मधु मालती
नयण घीव, उर आग, मुख हांसी, मन रोवणा
रोज-रोज ई राग, म्हांसूं निभै न मालती
दरद न होसी दूर, यो नह कर, पद, माथ रो
हिवड़ा रो नासूर, मरियां मिटसी मालती
मद पीधा मन मार, विस पीधा थां विसरवा
पापण प्रीत खुमार, मिटी न अे मधु मालती
नह बचपण री बेळ, नह मोट्यारां डोकरां
थारा म्हारा मेळ, मरियां पाछै मालती
पग-पग मचियो कीच, झिरमिर बरसै बादळी
बहता सावण बीच, मन मुरझावै मालती