कैयां सूं कांई होवै छै, कांई म्हांका दिल में?

काना सुण लीनी बोली सारी बातां,

बताई नहिं जावै कांई म्हांका दिल में॥

निमळा रैबा सूं कांई कांई बीती,

सुणाई नहिं जावै कांई म्हांका दिल में॥

घणां तो सतावै, कोई म्हानै चावै,

पण म्हां ही म्हांकी जाणां कांई म्हांका दिल में॥

झेलता ही आया, झेल ही रह्या छां,

कैबानै कुण नै जावो कांई म्हांका दिल में॥

स्वारथ साथै बतावै परमारथ,

झूठा परपंच की चोट म्हांका दिल में॥

च्यारूं कानी देखी बाड़ खेत खावै,

अनरथ अन्याय को सदमो म्हांका दिल में॥

बुरा मौजां मांणै, भला दुख पावै,

असो घोर अंधेर को घाव म्हांका दिल में॥

करबा को होसी सो कर'र बतास्यां,

क्यों कैरै खाली खोवां, कांई म्हांका दिल में॥

दिल का दुखड़ा सूं दिलड़ो भर्‌यो छै,

मुंडा सूं कांई कैवां कांई म्हांका दिल में॥

जद समै आसी घणी ही बतास्यां,

म्हे आज कांई कैवां कांई म्हांका दिल में॥

स्रोत
  • पोथी : स्वतंत्रता संग्राम गीतांजली | स्वाधीनता संग्राम की प्रेरक रचनाएं ,
  • सिरजक : हीरालाल शास्त्री ,
  • संपादक : मनोहर प्रभाकर / नारायणसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान स्वर्ण जयंती समारोह समिति, जयपुर / राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी
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