तुतलावण रै सागै
औ जाण्यौ
अन्धारे रौ भी आपरो रंग
जाण्यौ–पंचाण्यौ;
ऊगते सूरज नै देख 'र
ओ जाण्यौ
रोसनी रौ काम है-
अन्धेरो चाटणौ;
पगां तांण चालतां
काळी पाटी माथै
क ख ग लिखतां
पैचाण्यौ
हरफां रौ काळै माथै उभरणो;
डगमगाता पगा सूं
घर पिछवाड़ै
म्हैं खुद
फुसफुसावतां फूलां ने सुण्या
कै- आदत है
अन्धेरे री
पांखड्यां नौचणी
पण
तासीर है
ताजा हवा री
बपरांवती जावै जूंण!