घरआळी एक दिन

जद घरां आई हांड।

बोली, अंगरेजी पढ़स्यूं,

पढ़ासी मैडम टांड।

दो चार दिन चाल्यो टयूसण।

फैल ग्यो संस्कृतियां गो प्रदूषण।

दोन्यू हो गई चूंडम-चूण्डा।

गाळ काढ़े कोझी, बोलैं भूण्डा।

टयूसण गै असर तो

कर दियो काण्ड।

बीने कैवै 'बलड्डी फूल',

बा ईन्नै कैवै कुत्ती रांड।

स्रोत
  • सिरजक : रूप सिंह राजपुरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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