घड़बड़ घड़बड़ करती जावै, कस'र बांध्यो धाबळियो॥

माथै तगारी,हाथ कबाड़ी, खांधे बांध्यो टाबरियो॥

एक हाथ में भातो ले'र,बा जावै,बा जावै।

बा कुण जावै? बा कुण जावै ?

जाय खेत में बैठे कोनी,काम करै है दिन सारो।

खेता में विसराम कठै है, बळदा ने नांखे चारो

दुवै-बिलोवे,पोसे-पौवे, पछै नित खेतां जावै।

बा कुण जावै? बा कुण जावै?

खूड़-सबाड़-निनाण करावै,भर भर पाणी ल्यावै है।

आंवती ईधण लै आवै,टाबरिया रमावै है।

लिछमी है करसा री, जिकी खेत में जावै है

बा कुण जावै? बा कुण जावै?

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी 1981 ,
  • सिरजक : देवकिशन राजपुरोहित ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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