साच है

कै तूं

हां, तूं ही तो है,

कण मांय अर मण मांय।

दसूं दिसावां

आठू पौर

तूं है सुलभ

अर सगतीमान।

जद ही तो होय जावै

थारा दरसण सोरै-सांस।

मिल जावै

माथो टेकतो

हर चौरायै अर मोड़ माथै

माचिस री बिना तील्यां री

डब्बी सूं लेय’र

खैणी रै रद्दी कागद तांई।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरिशंकर आचार्य ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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