सुरजी

फेर तप्यो है

दिप्यो है

कण-कण धरा रो

काळीबंगां रै थेड़ में

नीं ढूंढै छींयां

तपते तावड़ै

नीं कोई आवै

है कोनीं कोई

जको ताणै

तावड़ै में छातो

बो देखो

गयो परो

आगूण सूं आथूण

थेड़ नै डाकतो सुरजी।

स्रोत
  • पोथी : आंख भर चितराम ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण