सरे बजार अबै हादसा हुवै है

हत्या, बलात्कार, घोटाळा सूं

अखबार रंगिया निजर आवै है

दुख है कै

म्हारा दोस्तां मांय वफादरी नीं

दाकारी बौत है

घणो मुसकल है फरेबां सूं लड़बो

अबै झूठी हंसी हंसण री बिमारी बौत है

नीं जिणरै दो टेम रोटी मयसर

उणां में खुदारी बौत है

देस मांय बेकारी बौत है

फेरूं

जिंदगाणी प्यारी बौत है!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली जनवरी-मार्च 2014 ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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