मारे परणेतर

आज़ै

परदेश थकी पासो आव्यो।

एनै लावी थकी हाँली

नै कण फूल पैरी नै

मै

आतमणा अंगास एडै जोयु

तो

मारा हरक नौ पार नै र्यौ।

मारी रूपानी, रुपारी हाली

ने कणफूल।

समकता थका देकाई र्या हता।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : देवी लाल जानी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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