थां सूं अळगो कर्यो आपो,

फेरूं पाछी बावड़ी

तद दीन्यो मान।

थूं जद नावड़्यो नवी मंजलां

पाछो नीं बावड़्यो

थूं म्हारै बावड़नै री

इयां हळकाई कर दीनी।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण