अेक भाव जद टूटै है

तो चणार रै दरख्तां री छांव में

बैठ्या बैठ्या

अेक अजाणो पीड़ सूं।

हियड़ो कुळै है-म्हारो आजकाल!

कास! मैं अैक मेमणो होवतो

डूंगरां रै

च्यारूं मेर घूम'र

हरया हरया चर लेवतो पान'र पत्ता

जद नी

ढाल री फिकर होवती

अर नी छडाई री

म्हारी कविता री

जद मौत होवै है

मैं दूसरी रच लेवूं हूं

पण अचम्भो इण बात रो है

जद म्हारी मौत होसी

तो म्हारी कवितावां

कदै नी मरसी

बो आपरी फाट्योड़ी पैंट नै

हाथां सूं ढक'र

मनै कैवै है

देख थारी पैंट फाट री है

मैं हंसू हूं धीरै सूं

अर कैवै हूं

अरै यार!

थारा लत्ता-म्हारा सूं

ज्यादा फाट्योड़ा है।

पण अबार तो

मनै आपरी कविता री फिकर है

कै बो-मर नी जावै

पण लाग है

म्हारी कवितावां मरती रैवसी

जद ताई

मैं जीवतो हूं।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : पूरन सरमा ,
  • संपादक : मोहनलाल पुरोहित
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