दिनां रै फेर में

उणरै रात-रात जागवा में

अेक विसवास हौ

अेक आस ही

अेक चोखौ-सोरौ भविस हौ।

आज उणरी इण हालत में

घणौ दुख अर पीड़ है

क्यूंकै

उणरी आस-विसवास

उणरौ बेटौ

सैर री चमक-दमक देख’र

व्हेग्यौ उणसूं अळगौ।

जीवण तौ यूं बीत जावैला

पण, कोई आस क्यूं टूटी?

दुआ करूं

मिंदर-म्हैल टूटै भलै

प्रभु!

विसवास को रौ नीं टूटै।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : किरण राजपुरोहित ‘नितिला’ ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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