बो गोधो
सभाव सूं सूधो गाय हो
गाँधी बाबै जिसो
अहिंसा भाव रो
न मारतो न हुड़ी लगावतो।
पण अेक दिन
गऊ सूं सिंघ बणग्यो
हिरण सूं हिरणाकस बणग्यो,
मन चावी करण लागग्यो
जठै चावै चरण लागग्यो
गोधां नै लड़वा दिया
बाछड़ां नै मरवा दिया
समझायां समझै नीं
दबाया दबै नीं
मिसळायां मानै नीं
हटायो हटै नीं
सगळा अंचूभै भरग्या
माथा मार-मार थाकग्या-
कै विधाता रो रचाव
किंया बदळग्यो
गऊ रो जायो सिंघ
कियां बणग्यो!
घणी माथापच्ची पछै
पतो लाग्यो कै
गोधै में ओ बदळाव
इण खातर आयग्यो
कै आज बो
अखबार में छपी
किणी बड़ै नेता री
फोटू खायग्यो।