रूंख म्हारा जीवन रा आधार,

आंगण में रूंखड़ा लगाओ।

मिनखां नै फळ देवै, रूंखा री माया।

ढोरां नै चारो दे, राही नै छायां॥

रूंख सागै सृष्टि रा अवतार,

राखंड में रूंखड़ा लगाओ।

माटी री ममता सूं जुड़िया ये रूंखड़ा।

मिनखां सूं रूड़ा है हरियाळा रूंखड़ा।

रूंख जड़ी-बूंटी रा भण्डार,

अनबन में रूंखड़ा लगाओ।

मीठो-सो अमरत रस देवै है रूंखड़ा।

भांत-भांत कतरण रंग-रंगी है फूलड़ा॥

रूंख म्हारी धरती रा सिंणगार,

खेतां में रूंखड़ा लगाओ।

पांखी रा नीड़, संगी बरखा बहार रा।

बेलड़ियां लूम गावै गीतड़ला प्यार रा॥

गुन-गुन-गुन भंवरै री गुंजार,

आंगण में रूंखड़ा लगाओे।

टाबर रा खेलकण्या, हालुरिया पालणां।

आंधा री लाकड़ी ये, तोरण अर बारणां॥

डोलियां में चालिया कहार,

मारग में रूंखड़ा लगाओ।

कोयल री कूक बोलै मेहो मीठा मोरिया।

सावण री तीज झूलै झूला गणगोरियां।

रूड़ा लागै तीज अर त्युंहार,

बागां में रूंखड़ा लगाओ।

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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