गोगड़ तप चिणां री भाजी।

काको नाचै काकी राजी।

बास बगेलै टाबर नाचे,

धूणी बैठ्यां तापै दाजी।

म्हारा मरुधर री झांकी॥

राजस्थान घणो अलबेलो,

सबर घणी संतोष घणो छ।

ज्वार बाजरी ताती रोट्यां.

छाछ राबड़ी होस घणो छै।

मोती चूर मगध रा लाडू,

मालपुआ मूंडै जावै।

साग चिणां री रोट मक्का रा,

ऊमर भर तक स्वाद जावै।

तप तापो तो ठंडी भाज्यी।

म्हारा मरुधर री झांकी॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मोहन मण्डेला ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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