मरी शकता स नती
ताज़ो आदमी नै ताज़ो काल
समाज नीं साधना नुं विषय
सब नूं कल्याण नैं होय
तो कांय मतलब नती
वसुधैव कुटुम्बकम् नुं।
सामुहिक भलाई वास्ते
सामुहिक प्रयास
मांग है आज़ ना युग नीं
विज्ञान थकी संगम थाय
आत्म-ज्ञान नुं।
अन्तरिक्ष मएं फरी आयवा
चन्द्रमा ने आय-पाय
घर वसावा नो विचार राखी रया हैं
पण पूरो इलाज
नैं करावी शक्या हैं
घृणा नी बीमारी नो।
थई गई घोषित
केटलिए कुरीतिए
अपराध
संविधान मएं
पण समाज ना घणा खरा सेवक
अज़ी लगण थई र्या हैं
खोटा परहेज़ ना शिकार
घृणा एटलाकी!
कै जीवता ने बारवा नीं खबरे
मलें हैं अखबारं मएं।
साध्य-साधन
औषध-वैद्य
सब कुछ थई जाय शिक्षा
कैम के ज़रूरी थई ग्यु है
भावनागत परिवर्तन करवु।
दाड़े-दाड़े वदतु ज़ई र्यू
घृणा नुं विष-वृक्ष
अवे जड़ मूल थकी स काटवु पड़ेगा
तारे'स मटेगा
मानवता ना माथे लाग्यो कलंक।