घूमर घालती छोर्यां

ऊगतै सूरज सूं गळबाखळी रमती

फुदक रैयी है

पैल-दूज माथै

घर रै आंगणै

रंग-बिरंगा फूलां जड़ती

माथै चोटियां भेळी

उड़ती रैवै तितलियां सागै

बरसावै हेत री बरखा

घर रै आंगणै

ढळती सिंझ्या

चांद-चांदणी

अठखेलियां करती तारा छायी

हार्यो चांद, मुळकतो आभो

रात बरसतो इमरत मांगै

अे छोर्यां नाच-नचावै

उछळ-कूद री सीमा कोनी

मां पर धौंस जमावै

बापू रै भेळा रमती

बहादुरी रो पाठ पढावै

कमती नीं हां छोरां सूं म्हे

सांची बात बतावै

बदळै दुनिया, हवा बदळ दी

गावै प्रेम रो गीत

घूमर घालती छोर्यां

घर रै आंगणै।

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़