मैह अंधारी रात मांय दै न कोई साथ तौ
अेकलौ ई हाल थूं, अेकलौ ई हाल रै।

1

थूं खरौ है मानखौ बीच मांय रुकै कठै
नैम नै निभावणौ बीच मांय डिगै कठै
नैह रौ ओ पंथ है उठ कदम बढाय लै
आफतां ने भैण जांण नै गळै लगाय लै
लोग मसखरी करै थूं हाल देख भाळ रै।
अेकलौ ई हाल थूं, अेकलौ ई हाल रै।

2

अेकलौ ई भाण सै भोम नै उजाळ दै
अेकलौ ई चांद सै रात नै सिंगार दै
अेक फूल जै खिलै तौ बाग ने सजाय दै
अेक गीत परारथना रौ दैव नै बुलाय दै
हालतौ रै हर घड़ी लै हीमत री ढाल रै
अेकलौ ई हाल थूं, अेकलौ ई हाल रै।

3

नैक रस्ते हालतां जै आज कोई गाळ दै
क्यूं करै थूं रीस वण नै हंस परौ ने टाळ दै
वै खड़्या जै बार मांय बैर नैण मांय लियां
हंस परौ नै नैह री हथकड़ी पिन्हाय दै
हालतौ रे मानखां थूं तौड़ सै जाळ रै
अेकलौ ई हाल थूं,अेकलौ ई हाल रै।
स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : जबरनाथ पुरोहित ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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