आज नहीं मीठास रैह्यो है, गन्ना और चुकन्दर में।
मिनखाचारो तड़फै तरस्यो, घुळरी भाँग समन्दर में॥
पाणी रो है काळ जमी पै,
ओ दुख जावै सह्यो नहीं।
मोती-मानस-चून मायनै,
रहिमन! पाणी रह्यो नहीं॥
पाणी तज नै सून हुआ सब
व्यथा कठै जा गाऊँ म्है?
ठाँण-ठाँण पर भैंस बँधी है,
किण नै बीन सुणाऊँ म्हैं?
रीति-नीति अर सज्जनता सब, उळझी फिरै लफन्दर में।
कणी जगाँ रौ तिरस बुझाऊँ, घुळरी भाँग समन्दर में॥
मोटा-मोटा शेर-बबर्ची,
छोटाँ पर नीत घूरै है।
झपट गरीबाँ री रोटी वै,
घी-शक्कर में चूरै है॥
मरजी हुवै ज्यूँ फसल नोट री,
बोलै, काटै, ऊरै है।
अरज कराँ तो आँख्याँ काढै,
दाँत्याँ करै लबूरै है॥
मनै बतावो फरक काँई है, इस्या मिनख अर बन्दर में।
मिनखा चारो कठै तलाशाँ, घुळरी भाँग समन्दर में॥
देख दशा धरती री काँपै,
अन्तस गाँधी-गौतम रो।
और मुहम्मद, नानक, ईसा,
मर्यादा पुरुषोत्तम रो॥
यूरेनियम रा बीज जमी घर,
जगाँ-जँगा जन बोवै है।
सत्य-अहिंसा शब्द-कोष में,
दो-दो झुळक्याँ रोवै है॥
जगाँ-जगाँ चाणक्य बिराज्या मठाधीश, बण मन्दर में।
चौफेराँ बारूद बिछयौ है, घुळरी भाँग समन्दर में॥
कथनी अर करनी रै माहीं,
जमी-गगन रो अन्तर है।
छुरी बगल में पण मुखड़ा में,
राम-नाम रो मन्तर है॥
सौ चूहाँ रो करै सिरावण,
बिल्ली तीरथ न्हावै है।
शस्त्राँ रा बोपारी सगळा,
गीत शांति रा गावै है॥
साँठ-गाँठ करवावै स्याणा, पौरस और सिकन्दर में।
टुकड़ा-टुकड़ा धरती बंट री, धुळरी भाँग समन्दर में॥