परेम री उडिकणां

जागतां, सोंवता

कदै कदै लगोलग

अेक डोळ बैठ्या

चित माथै

उळझता-सुळझता

कदै बिरखा

कदै सियाळै

कदै उंध्याळै ताणी तरसता

बसंत मुळकता

चौमासै बरसता

दिन महिना।

साल जाणै कद बदळता

मिलणै बिछड़णै का घणकरां गीत

गढ़्या जावै

सुपनां औळख्यां मैं

उड़ता दिखै

कदै तावड़ी

कदै छांव,

कदै मून हूई या काया

जड़ सी पसरै अेक ठांव

पण!

परेम रै धोरै चालतां

पग कदै खावै ताव

लगोलग दिखै

उडिकणां करता।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मीनाक्षी पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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