घसूल्या को सभाव छै,

पांव में

गड़्यां पाछै

पाकबो, फूटबो

दनां तांई तरड़ाबो अर अरड़ाबो।

मट ही जावै छै

महीना दो महीनां पाछै

घाव अर दूखबो

पण बातां का घसूल्या

तो कदी पाकै

अर फूटै

अर सालता रहै छै

दनां तांई

काळज्या के भीतर

अर कदी-कदी तो

जूण जातरा के

आखरी पड़ाव तांई।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : राजेन्द्र गौड़ 'धूळेट' ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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