उजीता अर अंधारा मांय

फरक करण री

इण टैम कीं जरूरत नीं है,

अबार चाल जासी

झूठा-सांचा आंकड़ा,

इयां जियां-

भांस सारू काकड़ा

थे तो दनूगै स्यूं

दन आंथ्यां तांईं करता रैवो

आपरी कारीगरी,

साच नैं झूठ

अर झूठ नैं साच बता’र

कर दो आपरी

ड्योटी रो काम,

बो गरीब है,

राज रूठ जासी

पण राम नीं रूठैला,

वणां री मुसीबतां स्यूं घबरा’र

थे मती छोडज्यो

आपरो धरम,

बचा’र राखज्यो

आंख्यां मांय पाणी

अर मन मांय शरम,

कदी नाळ ज्यो

वठीनै बी

घस्योड़ी चप्पलां

फाटी बगतरी

अर कारी लाग्योड़ी

धोवती, रोवती थकी

थां सूं अरदास करै-

म्हे गरीब हां,

जो कसी स्कीमां स्यूं

अबार तांईं

अबार तांईं

आखी जिनगाणी आगै नीं बध पाया,

अंधारा सूं

नीं पाया सैचन्नण उजीता मांय,

हे राम!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : सत्यनारायण ‘सत्य’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै